Sunday, December 26, 2010

अब कही और जाना है
ये जगह अब हमारी नहीं
नए रिवाज बन रहे है अब यहाँ
अब यहाँ हमारा गुजारा नहीं
वो ही अब हमें गैर कि तरह देख रहे
जिन्होंने हमसे चलना सीखा
दिन को ही जब दिखाई नहीं देता
रात अब क्या हमारी होगी
सब कुछ अब तन्हाई में खो रहा है
जो अब तक हंसी से गुलजार था

Wednesday, December 15, 2010

ख्याल भी तो वक्त के साथ बदलते है 
हम भी अपने को बदल रहे है
पर अब भी लगता है पहले की तरह
क्या हम ज़माने को बदल सकते है
मैं अपनी आवाज उठा सकता हूँ 
लोग मेरे साथ चले न चले
परवा मुझे नहीं ज़माने की
जमाना अपनी राह चले तो चले
कुछ ने चली अपनी राह हमेशा
कुछ तो है हमेशा जो चले सच के साथ
अब कुछ नए नजरिये हमें बनाने है
नया दौर है नया खून है
नया वक्त हमारा है
ये देश अंगड़ाई ले रहा है
अब हमें भी लोगो को जगाना है

Saturday, November 13, 2010

जब हम न होंगे: यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,

जब हम न होंगे: यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,: "कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहाँ से चलें और उम्..."
प्यार कि बाते कितनी मीठी होती है
पर सच्चाई कितनी कटु होती है

Monday, November 8, 2010

यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,

कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।

यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिये।

न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं, इस सफ़र के लिए।

खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख़्वाब सही,
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए।

वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए।

तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर को,
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए।

जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले,
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं,
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।

वो सलीबों के क़रीब आए तो हमको,
क़ायदे-कानून समझाने लगे हैं।

एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है,
जिसमें तहख़ानों से तहख़ाने लगे हैं।

मछलियों में खलबली है, अब सफ़ीने,
उस तरफ जाने से कतराने लगे हैं।

मौलवी से डाँट खाकर अहले मक़तब
फिर उसी आयत को दोहराने लगे हैं।

अब नयी तहज़ीब के पेशे-नज़र हम,
आदमी को भूनकर खाने लगे हैं।

ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,
मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।

यहाँ तक आते-आते सूख जाती है कई नदियाँ,
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।

ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते,
वो सब-के-सब परीशाँ हैं, वहाँ पर क्या हुआ होगा।

तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुनकर तो लगता है,
कि इन्सानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा।

कई फ़ाके बिताकर मर गया, जो उसके बारे में,
वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा।

यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,
ख़ुदा जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा।

चलो, अब यादगारों की अंधेरी कोठरी खोलें,
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा।


दुष्यंत कुमार कि कविता शायद सब के लिए लिखी गयी है . बार बार पढ़िए , हर बार आपको कुछ नया मिलेगा
'

Wednesday, November 3, 2010

सितम की इंतहा क्या है?

शहीद भगत सिंह कि एक कविता मुझे अचानक कही मिली है . फिर मन में आया कि क्या इसे अपने ब्लॉग में देना सही होगा . पर उस वीर कि आजादी के जज्बे ने मुझ डरपोक में भी ये साहस जगा दिया कि ये कविता सब के लिए है. उस मानुष कि आवाज जो अंग्रेजो को थर्रा सकती थी में आज भी दम है . आज भी जरूरत है इस देश के सोये जवानों को जगाने की . मुझे यह सही सही पता भी नहीं कि ये कविता उन्ही कि है या  नहीं . पर पहली चार पंक्तियों से ही अप मन जायेंगे कि ये उन्ही कि कविता है
उसे यह फ़िक्र है हरदम,
नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें,
सितम की इंतहा क्या है?
दहर से क्यों खफ़ा रहे,
चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही,
आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमान हूँ,
ए-अहले-महफ़िल,
चरागे सहर हूँ,
बुझा चाहता हूँ।
मेरी हवाओं में रहेगी,
ख़यालों की बिजली,
यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी,
रहे रहे न रहे।
 
है ना कुछ बात दोस्तों .  मेरे ब्लॉग के इस प्रविस्ठी का नाम मैंने इसी कविता कि एक लाइन पे रखा है . इस सितम कि इन्तहा क्या है . वाकई इस एक लाइन से ही उस शहीद के जज्बे को सलाम करने का बारम्बार मन होता है . ये चुनौती थी पूरी अंग्रेजी सल्तनत को कि बता तेरे सितम कि इन्तहा क्या है . आ देखे तेरे बाजुओ में दम कितना है .

त्यौहार

अब नई नई बाते सुनता हु मैं
पिछली होली में सुना था कि अब से रंग नहीं खेलना है
अब अबीर होली खेलेंगे
जो बूढ़े अब पानी से नहा नहीं सकते
वो देश को सिखा रहे है कि रंग नहीं खेलना है
तर्क उनका है कि पानी बर्बाद ना करो
अपनी नामर्दी के साये में वे बच्चो से उनकी होली छीन रहे है
जो अपने गमले को सींचने के लिए रोज पानी बर्बाद करते है
वो बच्चो कि एक दिन कि होली को बंद करना चाहते है
अब एक नया नारा है
इको फ्रेंडली दिवाली मनाना है
फटाके नहीं फोड़ने है 
देश में पॉवर प्लांट चलने वाले बच्चो को बता रहे है
कि फटाके से प्रदूषण होता है
राज्योत्सव में दस मिनट में एक हजार किलो बारूद जलाने वाले
कहते है फटाके ना जलाओ
हाँ ये अभियान है एक हमारे संस्कारो को बदलने का
जम के फोड़ो फटाके , जम के खेलो रंग
हमारे है त्यौहार
मनाएंगे हम इन्हें अपने ही ढंग
बूढ़े जो मरने के करीब है , अपनी मौत का इंतज़ार करे
या आये हमारे साथ जवान होने
खेले रंग जम के और छुपा ले अपनी झुर्रियो को
कुछ दिनों के लिए
या कही और जाये अपने कैम्पेन को चलाने के लिए
और भी त्यौहार है दुनिया में
और भी रिवाज है दुनिया में
बदलने के लिए

अंत

कही जाके हर रास्ते ख़त्म हो जाते है
कही जीवन की हर वजह ख़त्म हो जाती है
तेरा क्या है मेरा क्या है
ये दुनिया ही किसी और की हो जाती है
फकत एक पात्र हूँ मैं भी रंगमंच का
तेरी तरह ही मेरे भी संवाद खत्म हो जाते है
कब तक जिए और किसलिए जिए हम
शायद अपने हिस्से की हर बात जी चुके हम
अंतहीन सपने अब भी बरक़रार है
उसी तरह जिस तरह बचपन में थे
पर अब शायद इशारा होने लगा है
सफ़र अब शायद ख़त्म होने लगा है
एक दिन इस वजूद का भी अंत होना है
सच के दामन में दफ़न होना है

Tuesday, November 2, 2010

दुनिया में जो चाहो वो नहीं मिलता
प्यार चाहो प्यार नहीं मिलता
धन चाहो धन नहीं मिलता
पद चाहो पद नहीं मिलता
हद तो तब है जब गम चाहो गम नहीं मिलता
कभी मौत चाहो तो मौत नहीं मिलता

Saturday, October 9, 2010

अब ना कहूँगा

अब ना कहूँगा
प्यार की   बाते
अब ना कहूँगा
हंसी की बाते
अब ना कहूँगा
ख़ुशी कीबाते
अब ना कहूँगा
गर्व की बाते
अब ना कहूँगा
जलन की बाते
अब ना कहूँगा
फर्ज की बाते
अब ना कहूँगा
कर्त्तव्य की बाते
अब ना कहूँगा
क्रोध की बाते
बातो का अब कोई मतलब नहीं
चुप रहना सीख रहा हूँ
दुनिया में रहना सीख रहा हूँ

Monday, October 4, 2010

सब कुछ अच्छा ही हुआ

सरकारी नौकरी में कभी कभी डर भी लगता है. ३० तारिख को वाकई एक ऐसा दिन था जब हर कोई सोच में पड़ा था कि क्या होगा . लेकिन एक सकारात्मक बात थी कि हर किसी को सिर्फ फैसले का इन्तजार था . कोई दावा नहीं कर रहा था कि यह फैसला होगा . लोगो को किस तरह पलटना आता है यह भी दिखाई दिया . कई लोग २४ के फैसले को जुम्मे में मुस्लिम के तरफ होना बता रहे थे वही ३० को गुरुवार होने से हिन्दुओ कि ओर जाने कि बात करने लगे . आखिर फैसला आ ही गया और all is well  ही रहा . भारत के लोकतंत्र ने दुनिया को दिखा दिया कि यहाँ जज्बातों से भी महत्व पूर्ण मुद्दे होते है . एक कोर्ट के निर्णय से पूरा भारत हिल जाये  अब वो हालत नहीं रहे . वाकई भारत एक सुपर पॉवर बन रहा है. राष्ट्र मंडल खेल भारत में होने है और पुरे विश्व ने जान लिया कि ये देश अब हिंसा के खेल के लिए नहीं सच्चे खेलो के लिए तय्यारी कर रहा है . खेलो में भी अब भारत तेजी से तर्रक्की कर रहा है . लोग ये देख रहे है कि ये देश सिर्फ सपेरो का देश नहीं रहा है . इस देश से अब अमेरिका भी घबराता है .

Wednesday, September 29, 2010

सब कुछ अच्छा होगा

आज फिर दिन भर अटकलों का दौर जरी रहा . कौफी हाउस से लेकर तहसील ऑफिस के गलियारों तक सब अपनी अपनी दलील दे रहे है की जज किसकी तरफ फैसला करेंगे . एक सबसे अलग बात सुनाई दी की शायद ये हो सकता है की तीन जजों की बेंच के दो हिन्दू जज मुसलमानों के तरफ फैसला दे और मुस्लिम जज हिन्दुओ की तरफ अपनी राय दे. कही ऐसा न हो जाये की मुस्लिमो के पक्छ में २-१ से निर्णय आ जाये. अब अटकलों का ही दौर है . वाकई ऐसा लगता है की सबसे बड़ा फैसला आना है . यह भी अपनी अपनी किस्मत  होती है कि किसको क्या काम  मिलता है .  एक ही चट्टान का एक टुकड़ा मूर्ति के रूप में भगवान बनता है दूसरा मंदिर कि सीढ़ी में लगता है जिसमे सब पैर रखते है . यही जजों के साथ होता है . अधिकांश जज जेबकतरों को सजा देने में ही जीवन बिता देते है . जबकि इन तीन जजों कि किस्मत में राम लला के जन्मस्थान का निर्धारण नियत है . आज कि रात तीनो शायद सो नहीं पाएंगे . कल उनके निर्णय के बाद कही हजारो फौजदारी मुक़दमे देश  भर में दर्ज न हो जाये ये चिंता उन्हें जरूर होगी . बहुत से लोगो का ये भी मानना है कि शायद फैसला ये हो कि दोनों को वंचित करते हुए सरकार को जमीन दे दी जाये. लेकिन जो भी हो कल सब कुछ अंतिम नहीं होगा . भारत कि न्याय प्रणाली में सच्चाई कि जीत होती जरूर है पर अगर कोई फैसले को अंतिम न होने देना चाहे तो उसके पास कई रास्ते मौजूद है . लेकिन एक बात है कि मुझे कही आम जनता से  कोई भी ऐसा उद्ग़ार सुनने को नहीं मिला कि फैसला यह होना चाहिए . हर कोई ये बता रहा है कि ये फैसला आ सकता है पर कोई यह नहीं कह रहा है कि यही फैसला आना चाहिए . या ये नहीं कह रहा है कि यह फैसला नहीं आने पर वह यह काम करेगा . सबको पता है कि भारत को लोक तंत्र बहुत मजबूत है . फिर १९८४ और १९९२ कि चोट लोग भूले नहीं है . पिछले २ वर्षो से गुजरात दंगो में चल रही कार्यवाहियों ने भी सबको काफी कुछ सिखाया है . सरकारी कर्मचारी तो किसी पक्छ में जाने कि बात शायद सोच भी नहीं सकते . कुल मिलकर मुझे तो यही लगता है कि all is well ही रहना है . मेरी तो यही दुआ है  आह्वान है सभी से कि संयम बनाये रखे . इस दिशा में सोचे कि वहा अकबरी राम स्कूल बनवाना है .

Sunday, September 26, 2010

naam

इस ब्लॉग को मैंने आज ही शुरू किया है . बहुत सोचने के बाद ( उतना ज्यादा भी नहीं ) मैंने नाम जब हम न होंगे रखा . अब सोचता हूँ की यही नाम क्यों . एक बार नाम बदल भी दिया मैंने , पर फिर वही कर दिया . अब लगता है की नहीं यही नाम सही रहेगा . एक दिन तो सबको जाना है लेकिन दुनिया के लिए कुछ छोड़ जाना चाहिए . सचिन के रन दुनिया में बने रहेंगे , लता की आवाज बनी रहेगी. लेकिन हमारा क्या होगा . किताब लिखने की  बचपन से सोचता आया हूँ लेकिन कभी इतना लिख पाउँगा ये संभव नहीं लगता . लेकिन ये अच्छा है तुरंत लिखो तुरंत सबके पढने के लिए उतार दो . मेरे बाद भी शायद ये सबके लिए दुनिया में बना रहेगा . इसी लिए इसका नाम मैंने जब हम न होंगे रखा है . अगर हमारे जाने के बाद भी किसी की नजर पड़ी तो कोई तो याद करेगा

pata nahi

क्यों लोग जन्म लेते है,  पता नहीं
क्यों लोग जीवन जीते है, पता नहीं
क्यों लोग पढाई करते है, पता नहीं
क्यों लोग खेलते है, पता नहीं
क्यों लोग  लड़ाई करते है, पता नहीं
क्यों लोग खाना खाते है, पता नहीं
क्यों लोग पूजा करते है,  पता नहीं
क्यों लोग बैर करते है, पता नहीं
क्यों लोग प्यार करते है, पता नहीं
क्यों लोग ईर्ष्या करते है, पता नहीं
क्यों लोग घमंड करते है, पता नहीं
क्यों लोग रोते है, पता नहीं
क्यों लोग हँसते है, पता नहीं
मुझे तो कुछ पता नहीं
किसी को भी शायद कुछ पता नहीं
ये अलग बात है की सब मानते है की उन्हें सब पता है
ॐ परम प्रभु दयालुता एवं कृपा के ईश्वर
ॐ परम प्रभु प्रेम एवं करुणा के ईश्वर
ॐ परम प्रभु इन कोशिकाओ को अधिकार में ले लो
ॐ परम प्रभु इस मस्तिष्क को अधिकार में ले लो
ॐ परम प्रभु इन  स्नायुओ  को अधिकार में ले लो
ॐ परम प्रभु इस विचार  को अधिकार में ले लो
ॐ परम प्रभु इस वाणी   को अधिकार में ले लो
ॐ परम प्रभु इस कर्म   को अधिकार में ले लो
ॐ परम प्रभु इस शरीर को अधिकार में ले लो
ॐ परम प्रभु इस ह्रदय   को अधिकार में ले लो
ॐ परम प्रभु इस पदार्थ  को अधिकार में ले लो
ॐ परम प्रभु इस अवचेतन को अधिकार में ले लो
ॐ परम प्रभु इस अचेतन  को अधिकार में ले लो
( श्री माँ का अजेंडा किताब से साभार ) पता नहीं इसे यहाँ देना था या नहीं . लेकिन पढने के बाद पता नहीं क्यूँ लगा की सबको इसे पढना चाहिए तो मैंने इसे यहाँ पोस्ट कर दिया .

nam ayodhya par yudhhsthal

अयोध्या हमें बीच बीच में डराता है .
 राम की नगरी है या हमारे लिए कोई खौफ है .
सिर्फ खौफ ही होता तो  बेहतर होता .
इसने तो हजारो मांगे सूनी  की है .
लंका में जितने लोग नहीं मरे होंगे
उस  से ज्यादा राम के नाम के कारण मर चुके है .
बाबर भी शायद उतने लोगो को नहीं पर पाया हो.
जितनो को बाबरी ने मर दिया है.
शायद अब बाकि और बाबर दोनों न चाहते हो
कि अब भी इंसान बर्बर बना रहे .
आखिर ५०० साल बीत चुके है
 इतने साल बाद भी क्या पशुता में कोई कमी नहीं नहीं आई है .
राम ने भी तो अपना धनुष रख दिया था .
अब भी क्यों मार रहे हो लोगो को उनके नाम पर .
राम पर सिर्फ एक ही दाग था सीता कि परीक्षा का
लेकिन ये दाग तो उससे भी गहरा है .
जिसकी जन्मभूमि को जज तय करे
जिस जन्मभूमि को जज तय करे .
वो तय न हो तो बेहतर है
मान ले हम कि राम ने भारत में जन्म लिया था
भारत में उसका मंदिर बना दे
राम कि मूल आत्मा को मान ले
सिर्फ एक मंदिर नहीं राम राज बना दे

meri jaroorat

क्यूँ जी रहा हु मैं
आखिर काम क्या है मेरा दुनिया में
अगर मैं ना रहा तो क्या रुक जायेगा इस दुनिया में
क्या जरूरत है इस दुनिया को मेरी
हर दिन २४ घंटो को खर्च कर रहा हूँ
जाने कि घडी निकट आती जा रही है
मेरे काम बढते जा रहे है
लेकिन उन कामो का कोई मतलब नहीं है
बचपन में पढता था कुछ सीखता था
अब तो मैं ज्ञानी हू सिर्फ ज्ञान देता हू
जानता कुछ भी नहीं हूँ
पर सिखाता सब को हूँ
इश्वर अगर तुम कही हो तो मुझे
कुछ काम सिखा दो
ऐसे काम जो इस संसार कि जरूरत के हो

meri pahli kavita

 बाबर और राम , और कितने मरेंगे तेरे नाम
फिर तमाशा शुरू हो चूका है .
फिर लोग मरने कि सोच रहे है .
हाँ ये सच है .
हर हिन्दू दंगाई नहीं होता
हर मुस्लिम हत्यारा नहीं होता .
लेकिन अधिकतर आम आदमी होता है
जो मरने कि सोचता है .
कुछ ही मारने कि सोचते है .
जो अफ़सोस है कि दंगो में खुद नहीं मरते है
मरता तो आम आदमी है .
जो मरते वक्त  हिन्दू या मुस्लिम नहीं होता .
मंदिर के ठेकेदारों इस देश को बचा लो .
ये देश मंदिरों का देश है .
इस देश में करोडो मंदिर है .
आओ नया मंदिर बनाये
एक ऐसा मंदिर जिसे दुनिया देखे
एक ऐसा मंदिर जो ताजमहल से भी सुन्दर हो
जो पूरे विश्व में सबसे बड़ा हो
जो पूरे विश्व में सबसे ऊँचा हो.
बोल के तो  देखो मुसलमानों को
करोडो रूपये दे देंगे जकात के .
सिर्फ जगह बदल लो
राम के पथ में हजारो स्थल है
कही भी जगह चुन लो
और आप मस्जिद के ठेकेदारों
देश में अकबरी मस्जिद बना लो .
अकबर ने जो बनाया उसे अपना लो .
हिन्दुओ को भाई बना लो .
४ साल कि शहंशाही थी बाबर कि
आज भी लोगो को मार रहा है
अकबर को याद करो
हिन्दुओ को प्यार करो.
जहाँ मस्जिद बनाना चाहते हो वह स्कूल बनाते है .
स्कूल का नाम रखना अकबरी राम स्कूल
वहां  इंसान पैदा होंगे
जो आदमी को मारना पसंद नहीं करेंगे