जब हम न होंगे
Saturday, November 13, 2010
जब हम न होंगे: यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,
जब हम न होंगे: यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,
: "कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहाँ से चलें और उम्..."
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