अब कही और जाना है
ये जगह अब हमारी नहीं
नए रिवाज बन रहे है अब यहाँ
अब यहाँ हमारा गुजारा नहीं
वो ही अब हमें गैर कि तरह देख रहे
जिन्होंने हमसे चलना सीखा
दिन को ही जब दिखाई नहीं देता
रात अब क्या हमारी होगी
सब कुछ अब तन्हाई में खो रहा है
जो अब तक हंसी से गुलजार था
No comments:
Post a Comment