Saturday, February 12, 2011

बहुत है राहें किस राह में चलना है
अंत सब का एक है सिर्फ अपने को छलना है
प्यार करना सीख ले सब यही जीवन का सार है
लड़ के जिसने  ने भी देखा कुछ ना जग से पाया
प्यार से जिसने जिया सारे जग ने उसको चाहा
इस पथ के पथिक सब है सब को वही जाना है
बीच में राह अलग हो जाये पर अंत वही मिलना है
मेरा क्या है तेरा क्या है ये झगडा ही बेमानी है
अंत सब को ख़ाली हाथ ही जाना है
रह जायेंगे दो बोल ही सबके बाकि किसको याद रहना है

Sunday, January 2, 2011

वास्तव में पिछले साल के हीरो रहे नीरा राडिया,ए राजा, विनायक सेन , ललित मोदी , सुरेश कलमाड़ी . इन सभी नामो में सामान यही है कि सभी नायक नहीं खलनायक है . पर साथ ही ये लम्बे समय तक देश के लिए नायक भी बने रहे है . नीरा राडिया इस देश के बड़े से बड़े आदमी तक आराम से पहुँच जाती थी जबकि वो इस देश कि है भी नहीं. एक विदेश कि महिला कि लोबिंग से भारत के मंत्री का चयन किया गया ये हमारे लोकतंत्र कि कतिपय खामियों को उजागर करता है . यहाँ ये जरूर ध्यान रखना है कि हमारा लोकतंत्र नाकारा नहीं है . सिर्फ कुछ खामिया है परन्तु इसमें इतनी शक्ति भी है कि कोई गलत आदमी इसमें बचा नहीं रह सकता है . यह अलग बात है कि आज भारत कि राजनीति में सिर्फ बेईमान लोगो का बोल बाला है इसलिए सभी लोग एक दुसरे को बचाने में लगे है . लेकिन एक सुनहरा भविष्य भी दिखाई दे रहा है क्यूंकि धीरे धीरे सब बाते खुलती जा रही है . नीरा राडिया आज अपने जेल जाने के दिन गिन रही है . ए राजा को करूणानिधि का साथ भी नहीं मिल रहा है . जो नेता आज सरकार गिराने कि क्षमता रखता है वो भी अपनी बेटी को बचाने के लिए कुछ नहीं कर पा रहा है . ललित मोदी जो दो  साल तक छाए रहे आज मारे मारे फिर रहे है . मोदी एक दिन इतने पावरफुल हो गए थे कि  जब हर कोई सोच रहा था कि वो गिरफ्तार कर लिए जायेंगे तब उसने बॉम्बे के स्टेडियम में हेलीकाप्टर से उतर कर ये बताया था कि नियम कायदे उनके लिए नहीं बने है . ये आज भी मेरे लिए सोच का विषय है कि क्या जिस जगह में पचास हजार लोग बैठे हो वहां हेलीकाप्टर उतारा  जा सकता है . क्या मोदी स्टेडियम में पोलीस कि अनुमति लेकर उतरे थे. खैर आज उनको सजा मिल रही है वो इस देश में आने कि स्थिति में भी नहीं है .सुरेश कलमाड़ी तो जैसे भर्ष्टाचार के आइकोन बन गए है . पिछले साल भर उनके बेशर्मी भरे बयानों से पूरा भारत वाकिफ होता रहा . पुरे विश्व ने भारत में छाए घोटाले घपलो को जाना . लेकिन इन सब के बीच हमारा प्रजातंत्र उन्नति करता रहा . चाहे अमेरिका हो या चीन सभी भारत को अपना बनाने में जुटे रहे . दुनिया के सबसे शक्तिमान राष्ट्रपति ओबामा भारत के युवाओ के कसीदे पढ़ते रहे . भारत खेलो में भी आगे बढता दिखाई दे रहा है . इस साल के दोनों  राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलो में भारतीय खिलाडी अच्छी स्थिति में रहे . यह सही है कि अभी हम काफी पीछे है पर उन्नति अब काफी हो रही है .
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Sunday, December 26, 2010

अब कही और जाना है
ये जगह अब हमारी नहीं
नए रिवाज बन रहे है अब यहाँ
अब यहाँ हमारा गुजारा नहीं
वो ही अब हमें गैर कि तरह देख रहे
जिन्होंने हमसे चलना सीखा
दिन को ही जब दिखाई नहीं देता
रात अब क्या हमारी होगी
सब कुछ अब तन्हाई में खो रहा है
जो अब तक हंसी से गुलजार था

Wednesday, December 15, 2010

ख्याल भी तो वक्त के साथ बदलते है 
हम भी अपने को बदल रहे है
पर अब भी लगता है पहले की तरह
क्या हम ज़माने को बदल सकते है
मैं अपनी आवाज उठा सकता हूँ 
लोग मेरे साथ चले न चले
परवा मुझे नहीं ज़माने की
जमाना अपनी राह चले तो चले
कुछ ने चली अपनी राह हमेशा
कुछ तो है हमेशा जो चले सच के साथ
अब कुछ नए नजरिये हमें बनाने है
नया दौर है नया खून है
नया वक्त हमारा है
ये देश अंगड़ाई ले रहा है
अब हमें भी लोगो को जगाना है

Saturday, November 13, 2010

जब हम न होंगे: यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,

जब हम न होंगे: यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,: "कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहाँ से चलें और उम्..."
प्यार कि बाते कितनी मीठी होती है
पर सच्चाई कितनी कटु होती है

Monday, November 8, 2010

यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,

कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।

यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिये।

न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं, इस सफ़र के लिए।

खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख़्वाब सही,
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए।

वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए।

तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर को,
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए।

जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले,
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं,
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।

वो सलीबों के क़रीब आए तो हमको,
क़ायदे-कानून समझाने लगे हैं।

एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है,
जिसमें तहख़ानों से तहख़ाने लगे हैं।

मछलियों में खलबली है, अब सफ़ीने,
उस तरफ जाने से कतराने लगे हैं।

मौलवी से डाँट खाकर अहले मक़तब
फिर उसी आयत को दोहराने लगे हैं।

अब नयी तहज़ीब के पेशे-नज़र हम,
आदमी को भूनकर खाने लगे हैं।

ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,
मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।

यहाँ तक आते-आते सूख जाती है कई नदियाँ,
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।

ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते,
वो सब-के-सब परीशाँ हैं, वहाँ पर क्या हुआ होगा।

तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुनकर तो लगता है,
कि इन्सानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा।

कई फ़ाके बिताकर मर गया, जो उसके बारे में,
वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा।

यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,
ख़ुदा जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा।

चलो, अब यादगारों की अंधेरी कोठरी खोलें,
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा।


दुष्यंत कुमार कि कविता शायद सब के लिए लिखी गयी है . बार बार पढ़िए , हर बार आपको कुछ नया मिलेगा
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