Saturday, February 12, 2011

बहुत है राहें किस राह में चलना है
अंत सब का एक है सिर्फ अपने को छलना है
प्यार करना सीख ले सब यही जीवन का सार है
लड़ के जिसने  ने भी देखा कुछ ना जग से पाया
प्यार से जिसने जिया सारे जग ने उसको चाहा
इस पथ के पथिक सब है सब को वही जाना है
बीच में राह अलग हो जाये पर अंत वही मिलना है
मेरा क्या है तेरा क्या है ये झगडा ही बेमानी है
अंत सब को ख़ाली हाथ ही जाना है
रह जायेंगे दो बोल ही सबके बाकि किसको याद रहना है

2 comments:

  1. बहुत है राहें किस राह में चलना है
    अंत सब का एक है सिर्फ अपने को छलना है
    प्यार करना सीख ले सब यही जीवन का सार है
    लड़ के जिसने ने भी देखा कुछ ना जग से पाया....

    मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।

    आपको रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें !

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